ओ३म् विश्वानि देव सवितर्दुरितगनि परासुव। यद्भद्रं तन्नअ्आसुव।। भक्त ईश्वर से प्रार्थना करता है कि विश्वानि देव हे परमेश्वर आप तो देव हो सबको देते हो ,इसलिए मुझे भी दो,त...
आयुर्वेद के विभिन्न ग्रंथों के प्रयोग से जो अग्नि में औषधी डालकर धूनी से ठीक होते है वह भी यज्ञ चिकित्सा का रूप है। नीम के पत्ते, वच, कूठ, हरण, सफ़ेद सरसों, गूगल के चूर्ण को घी म...
मनुष्य का स्वभाव है कि वह आपनी आवश्यकता के अनुसार कार्य करता है. और जब वह किसी कार्य को बार -२ करने लगता है तो इसे उसकी आदत कहते है.जैसे किसी ने किसी की सहायता की ,तो यह एक कर्म है ...